Happy New Year 2025
ये शाम जो ढलनेको हैं, जो साल ये गुजरनेको हैं, छाई ये निशा जो हैं, ये रात भी अब पिघलनेको हैं।
फरामोश ये वक्त भी सम्हलनेको हैं, मुस्ताकिर ये ज़मीन भी चलने हैं, ठहरा था जो लम्हा इस जहां, अब वो घड़ी भी बदलने को हैं।
(a little late on posting, not that it matters, but anyways)
©Kendra Pokhrel